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मॉस्को (2 अक्टूबर): इस दुनिया में अगर सबसे बड़ा सत्य कुछ है तो वह मृत्यु। लेकिन यह भी सही है कि कोई भी इंसान कभी मरना नहीं चाहता। शायद इसी बात की खोज के लिए निकले एक रूसी वैज्ञानिक अमरता की ओर बढ़ने का प्रयोग खुद पर ही कर डाला है।
हालांकि, इसे अमरता कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी, पर अपने प्रयोग के 2 सालों बाद तक उन्हें एक भी बार कोई फ्लू नहीं हुआ। दरअसल, 3.5 मिलियन साल पुराने बैक्टीरिया पर रिसर्च कर रहे रूसी वैज्ञानिक अनातोली ब्रॉउचकोव ने उस बैक्टीरिया को अपने शरीर में प्रवेश करा दिया, वो भी अवैज्ञानिक तरीके से।
उनका दावा है कि करोंड़ों सालों से जिंदा रहा ये वायरस बेहद शक्तिशाली है, जो मर ही नहीं रहा। ऐसे में हद तक संभव है कि वो मनुष्यों को भी अमरता प्रदान कर सकता है। उन्होंने इसे चूहों ह्यूमन ब्लड सेल्स पर प्रयोग किया और आखिर में खुद पर आजमाने का फैसला लिया।
अनातोली ब्रॉउचकोव कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि ये वॉयरस खतरनाक है। मैंने सीधे उसे अपने शरीर में इंजेक्ट किया। वैसे, ये प्रयोग कितना सफल है, इसका मेरे पास कोई आंकड़ा नहीं है। क्योंकि इसे मैंने अपने शरीर में किसी आधिकारिक अनुमति के प्रवेश नहीं कराया है। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। पर इसकी सफलता की गारंटी मेरा 2 सालों तक खड़े रहना है।
हालांकि, इसे अमरता कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी, पर अपने प्रयोग के 2 सालों बाद तक उन्हें एक भी बार कोई फ्लू नहीं हुआ। दरअसल, 3.5 मिलियन साल पुराने बैक्टीरिया पर रिसर्च कर रहे रूसी वैज्ञानिक अनातोली ब्रॉउचकोव ने उस बैक्टीरिया को अपने शरीर में प्रवेश करा दिया, वो भी अवैज्ञानिक तरीके से।
उनका दावा है कि करोंड़ों सालों से जिंदा रहा ये वायरस बेहद शक्तिशाली है, जो मर ही नहीं रहा। ऐसे में हद तक संभव है कि वो मनुष्यों को भी अमरता प्रदान कर सकता है। उन्होंने इसे चूहों ह्यूमन ब्लड सेल्स पर प्रयोग किया और आखिर में खुद पर आजमाने का फैसला लिया।
अनातोली ब्रॉउचकोव कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि ये वॉयरस खतरनाक है। मैंने सीधे उसे अपने शरीर में इंजेक्ट किया। वैसे, ये प्रयोग कितना सफल है, इसका मेरे पास कोई आंकड़ा नहीं है। क्योंकि इसे मैंने अपने शरीर में किसी आधिकारिक अनुमति के प्रवेश नहीं कराया है। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। पर इसकी सफलता की गारंटी मेरा 2 सालों तक खड़े रहना है।
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